GA4-314340326 Analysis : रामगढ़ उपचुनाव में कांग्रेस की हार का कारण बनी नियोजन नीति !

Analysis : रामगढ़ उपचुनाव में कांग्रेस की हार का कारण बनी नियोजन नीति !

रामगढ़ में विजय जुलूस के दौरान जीप पर सवार बाएं भाजपा सांसद जयंत सिन्हा, आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो व सुनीता चौधरी।

 Ranchi (Jharkhand) : रामगढ़ उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार बजरंग महतो की आजसू उम्मीदवार सुनीता चौधरी के हाथों 21,970 वोटों के अंतर से मिली बड़ी हार क्या झारखंड की महागठबंधन सरकार से जनता का हो रहे मोहभंग का संकेत है? चुनाव परिणाम आने के बाद यह सवाल उठने लगा है। क्योंकि, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए रामगढ़ इसलिए भी खास है कि यह उनका गृह जिला है। इसी जिले के गोला प्रखंड के नेम्बरा गांव के वे मूल निवासी हैं। यहां की हार-जीत सीधे तौर पर उनसे जुड़ती है। हालांकि, शायद राज्य सरकार को पहले ही हार का आभास हो गया था, इसी लिए पूरी कैबिनेट और महागठबंधन में शामिल कांग्रेस, राजद व झामुमो के सारे बड़े नेता जीत के लिए पूरी ताकत झोंके हुए थे। खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पूरे चुनाव कैंपेन की बागडोर अपने हाथ में लिए हुए थे। उन्होंने चुनाव परिणाम को महागठबंधन के पक्ष में करने के लिए कई जनसभाएं कीं। लोगों से बजरंग महतो को जिताने की अपील की। इसके बावजूद रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र की जनता पर कोई असर नहीं पड़ा। इस हार को उन्होंने कांग्रेस नहीं, बल्कि महागठबंधन की हार और धन बल की जीत बताया है। दूसरी ओर, आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो और भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता का जवाब और 2024 के चुनाव का संकेत बता रहे हैं।

अभी तक कोई उपचुनाव नहीं हारी थी हेमंत सरकार

झारखंड की सत्ता पर 2019 में काबिज होने के बाद से अभी तक हुए चार उपचुनावों में हेमंत सोरेन की नेतृत्ववाली महागठबंधन सरकार अपराजय रही थी। लेकिन, करीब छह महीने पहले झारखंड विधानसभा से नियोजन और स्थानीय नीति से संबंधित बिल पारित कराए जाने के बाद सरकार में शामिल झामुमो के मंत्रियों व नेताओं सहित खुद सीएम के बयान से वर्षों से झारखंड में बसे बाहरी लोगों के मन में संशय की स्थिति पैदा कर दी थी। लोग अपने भविष्य को लेकर चिंतित हो गए थे। चूंकि, इस तरह के बयान से झामुमो तो अपना वोट बैंक मजबूत कर रहा था, वहीं दूसरी ओर सरकार में शामिल कांग्रेस चुप्पी साधी हुई थी। यदि हम रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र पर नजर डालें, तो यहां के शहरी क्षेत्र में ज्यादा बाहरी लोग बसे हुए हैं, जिनके पास 1932 का खतियान नहीं है। यही वोटर यहां हार-जीत तय करते हैं। उप चुनाव में मौका मिलते ही उन्होंने अपना फैसला सुना दिया। इसके अलावा यहां के लोगों में कांग्रेस विधायक ममता देवी की विकास के प्रति उदासीनता भी नाराजगी की बड़ी वजह थी। लोग जब चंद्रप्रकाश चौधरी के कार्यकाल को याद करते थे, तो उन्हें लगता था पिछले तीन साल में यहां कुछ हुआ ही नहीं है।

जीत पर भाजपा को ज्यादा इतराने की जरूरत नहीं

रामगढ़ उपचुनाव में आजसू की जीत पर भाजपा कुछ ज्यादा ही इतरा रही है, उसे लग रहा है कि अब सत्ता उसके करीब आ गई है। लेकिन, यदि आजसू का साथ मिल जाने मात्र से यह जीत मिल गई है, तो ऐसा नहीं है। क्योंकि, 2019 के बाद दुमका, मधुपुर, बेरमो व मांडर विधानसभा के उपचुनावों में भी उसे आजसू का साथ मिला था। लेकिन, चुनाव मैदान में वह खुद उतरी थी। परिणाम चारों सीटों पर उसे हार का सामना करना पड़ा था। रामगढ़ विधानसभा के उपचुनाव में आजसू मैदान में थी, इसलिए आप अनुमान लगा सकते हैं। 

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