GA4-314340326 Big Story: 15 डिग्री तापमान में होनेवाली सेब की खेती को 41 डिग्री टेंप्रेचर में उगाया

Big Story: 15 डिग्री तापमान में होनेवाली सेब की खेती को 41 डिग्री टेंप्रेचर में उगाया

41 डिग्री तापमान में उगाया गया सेब
अनिल कुमार चौधरी/Angara (Ranchi) ठंडे प्रदेश के 15 डिग्री तापमान में होनेवाली सेब की खेती अब अनगड़ा के 41 डिग्री तापमान में संभव हो गया है। चिलदाग के लालगढ़ स्थित मास सेंटर में रांची में पड़ रही भीषण गर्मी में सेब की खेती की की जा रही है। यहां "हरमन 99" प्रजाति की सेब की खेती की जा रही है। सेब की खेती मास के संस्थापक सचिव विजय भरत ने प्रयोग के तौर पर की है। जनवरी 2022 में हिमाचल प्रदेश से उक्त प्रजाति के 12 पौधा मंगाकर लगाए गए थे। इस वर्ष से इन पौधों ने फल देना शुरू कर दिया है। सेब की खेती के लिए 15 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान होना आवश्यक है। गर्म प्रदेश में सेब की खेती की जा सके इसके लिए "हरमन 99" प्रजाति को विकसित किया गया है।   

सेब के लिए उपयुक्त नहीं थी मिट्टी, पोषक तत्व डालकर बनाया उर्वरक   

सेब की खेती के लिए मास संस्थान द्वारा मिट्टी की जांच की गई। जांच में पाया गया की यहां की जमीन सेब की खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। इसके बाद सेब का पौधा रोपने से पहले लगातार मिट्टी में सेब की खेती के लायक पोषक तत्व डाले गए। पिछले एक साल से लगातार मॉनिटरिंग करके मिट्टी में पोषक तत्व डालकर सेब की खेती शुरू की गई। पहले चरण में 12 सेब के पौधे लगाए गए, इनमें से सात पौधों ने एक ही साल के अंदर फल देना शुरू कर दिया है।                        

 एक दशक से भी अधिक समय से कृषि के विकास को लेकर काम कर रहे विजय भरत

मास के संस्थापक विजय भरत
कृषि के क्षेत्र में पिछले एक दशक से भी अधिक समय से विजय भरत काम कर रहे हैं। झारखंड सहित देश के अन्य राज्यों के किसानों को मास संस्था द्वारा लगातार नई-नई तकनीक का प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रहे हैं। विजय भरत बताते हैं कि दो साल तक सेब की खेती की मॉनिटरिंग जारी रहेगी। पहले साल में सेब का आकार औसतन छोटा है। फल का स्वाद बेहतर है। लेकिन, दो साल बाद इसका आकार अपनी आनुवांशिक शक्ति के आकार का हो जाएगा। इसके बाद झारखंड के किसानों को प्रशिक्षण देकर बहुतायत में सेब की खेती कराई जाएगी। इससे किसान तो आत्मनिर्भर बनेंगे ही, सेब के दामों में भी कमी आएगी। अभी तक सेब की पारंपरिक खेती जम्मू कश्मीर व हिमाचल प्रदेश में होती रही है। लेकिन, अब इसे झारखंड में भी करने की कवायद की जा रही है। 

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