कई प्रमुख स्थानों में लगता है टुसु मेला:-
प्रमुख टुसु मेलाओं में तुलीन बांधाघाट मेला सुवर्णरेखा नदी, सतीघाट मेला राढ़ु कांची और सुवर्ण रेखा संगम स्थल बरेन्दा, हुडरु टुसु मेला, मुरी टुंगरी टुसु मेला, सत्य मेला झालदा, राजरप्पा टुसु मेला, गौतमधारा टुसु मेला, माठा टुसु मेला, जयदा टुसु मेला, हिड़िक टुसु मेला, राममेला तिरुलडीह, हरिहर मेला, चोपद टुसु मेला, सुईसा नेताजी टुसु मेला, देवड़ी टुसु मेला, सूर्य मंदिर टुसु मेला बुन्डु, पतराहातु टुसु मेला, नीलगिरी टुसु मेला, मुनगा बुरु टुसु मेला, भेलवा टुंगरी टुसु मेला, नामकोम टुसु मेला रांची, जमशेदपुर टुसु मेला आदि सैकड़ो मेला लगते है। सुवर्णरेखा, दामोदर, कंसावती और इनकी सहायक नदियों के किनारे अनेक मेला लगते है।
टुसू परब में सपरिवार नया कपड़ा व जूते-चप्पल खरीदी जाता है
टुसु परब में गाॅव पर निवास करने वाले अधिकांश लोग नये कपड़े एवं जुता चप्पल खरीदते है। तरह तरह के खिलौने बिकते है। ढोल नगाड़ा और बाद्यय यंत्र की भी खुब बिक्री होती है इसके अतिरिक्त लकड़ी और लोहे की बनी घरेलू सामान की भी खुब बिक्री होती है खिलौने भी बिकते है। गाजर, मटर और सांक आलु तथा कतारी की भी खुब बिक्री होती है। बादाम बेचने वालों से हलवाई तक को रोजगार प्राप्त होता है। इसीलिए टुसु परब का महत्व बढ़ा हुआ है। ढोल नागाड़ा बजाने वाले, साउण्ड बाले और गाड़ी वाले को भी रोजगार प्राप्त होता है। इस परब में अधिकांश नये चीजों का प्रयोग होता है। इस संबंध में कुड़मी करम आखड़ा मुरी के भागीरथ महतो ने बताया कि टुसु परब प्रकृतिक धरम पर आधारित है प्रकृति पुजक लोगों का कोई लिखित ग्रन्थ नहीं है। पुजा करने की भी कोई लिखित भाषागत मंत्र नहीं है। इसीलिए प्रकृति पुजक लोगों को वेद विधी छाड़ा जाति बोला जाता है। परब का नाम अपनी भाषा के अनुसार है। देवा भुता भी उसी तरह है। उन्हे स्मरण करने मात्र से ही संतुष्ट हो जाते है। कुरमाली संस्कृति में पुजा का तात्पर्य बलि है जबकि परब का तात्पर्य पीठा है। इस संस्कृति में बारह मासे तेरह परब है। प्रत्येक परब का अलग अलग गीत और रंग है।
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