GA4-314340326 Inside Story : आखिर चंपाई को भाजपा में कौन ला रहा

Inside Story : आखिर चंपाई को भाजपा में कौन ला रहा


Ranchi (Jharkhand) : झामुमो के दिग्गज नेता और पार्टी में शिबू सोरेन (Sibu Soren) के बाद सबसे सीनियर रहे पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन (Champai Soren) का आखिर कैसे झामुमो और शिबू परिवार से मोह भंग हुआ? वे कैसे भाजपा में जाने को तैयार हो गए? क्योंकि, उन्हें तन-मन और धन से पूरी तरह झामुमो (JMM) व शिबू सोरेन के परिवार के प्रति वफादार माना जाता था। झामुमो और शिबू सोरेन के परिवार पर आए छोटे-बड़े हर संकट के समय चंपाई सोरेन का समर्पण और वफादारी दिखता था, इसी कारण से फरवरी में जेल जाने से पूर्व हेमंत सोरेन ने अपनी कुर्सी पत्नी कल्पना सोरेन को सौंपने की बजाय चंपाई सोरेन को सौंपी थी। आज जब चंपाई पार्टी, शिबू परिवार, मंत्री पद और विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं। 30 अगस्त को भाजपा ज्वाइन कर रहे हैं। अभी तक वे अपने तरीके से सारा कुछ स्पष्ट चुके हैं, इसके बावजूद आज हर किसी के मन में यह सवाल उठ रहा है कि हर वक्त शिबू परिवार, हेमंत सोरेन और झामुमो के साथ खड़ा रहनेवाला व्यक्ति कैसे ये सब छोड़ने को तैयार हो गया? ज्यादातर लोग इसके लिए असम के मुख्यमंत्री और झारखंड प्रदेश भाजपा (BJP) के चुनाव सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) को क्रेडिट दे रहे हैं। लोकिन, यह सच नहीं है। www.novbhaskar.com आपको पहले दिन से इस प्रक्ररण में जो बताता आ रहा है, अक्षरश: वही हो भी रहा है। इसके लिए novbhaskar परिवार अपने सूत्रों के प्रति आभारी है, तो चलिए अब फिर टॉपिक पर लौटते हैं, दरअसल चंपाई के मन में भाजपा के प्रति प्यार का बीज बोनेवाला शक्स हिमंता बिस्वा सरमा नहीं, बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा (Arjun Munda) हैं। 

जून में ही चंपाई के मन में आ गया था असंतोष

लोकसभा चुनाव से पहले 1 जून को दिल्ली में इंडिया गठबंधन (I.N.D.I.A)  की बैठक थी। उस बैठक में शामिल होने के लिए झामुमो से कल्पना सोरेन (Kalpana Soren) और तत्कालीन मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन दिल्ली गए थे। जिस फ्लाइट से ये दोनों रांची से दिल्ली जा रहे थे, उसी फ्लाइट में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा भी थे। यह महज संयोग ही था कि मुंडा के बगल की सीट पर चंपाई को सीट मिली थी। दोनों रांची से दिल्ली तक पूरे रास्ते आपस में बातचीत करते गए। चूंकि, दोनों एक ही जिले के हैं और झामुमो में भी साथ काम कर चुके हैं, इस कारण दोनों में बनती भी है। इसी बातचीत के क्रम में अर्जुन मुंडा चंपाई के मन में स्वाभिमान जगाने में सफल रहे। दिल्ली पहुंचने पर दोनों अपने-अपने रास्ते चले गए। लेकिन, चंपाई के मन में मुंडा की बातें घूमती रही, वे जब इंडिया गठबंधन की बैठक में पहुंचे तो घटक दलों के नेताओं ने उनसे ज्यादा महत्व कल्पना सोरेन को दिया। जबकि, कल्पना की उस वक्त पार्टी या सरकार में कोई हैसियत नहीं थी। वह घरेलू महिला थीं। दूसरी ओर, चंपाई झामुमो के वरिष्ठ नेता और मुख्यमंत्री थे। इसी तरह रांची में जब इंडिया गठबंधन की रैली हुई, तब भी चंपाई सोरेन के साथ गठबंधन के घटक दलों के नेताओं का व्यवहार रहा। और तो और चंपाई को संबोधित करने के लिए सबसे अंत में बुलाया गया और बीच में ही उन्हें रोक दिया गया। इसके बाद हेमंत सोरेन जब जमानत पर जेल से छूटे तो चंपाई सोरेन से इस्तीफा लेकर वे खुद सीएम बन गए। उस वक्त अर्जुन की बात चंपाई को उद्वेलित करने लगी और वे धीरे-धीरे बगावत की राह पर बढ़ चले। बाकी बात तो खुद चंपाई सोरेन ने बता ही दी है, इसलिए यहां उसकी चर्चा नहीं कर रहे।   

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अर्जुन ने एक तीर से किया दो शिकार 

चूंकि, 1991 के विधानसभा चुनाव में चंपाई सोरेन सरायकेला सीट से निर्दलीय जीतकर बिहार विधानसभा में पहुंचे थे। बाद में वे झामुमो में शामिल हो गए। 1995 के विधानसभा चुनाव में खरसावां सीट से झामुमो के टिकट पर अर्जुन मुंडा जीतकर बिहार विधानसभा पहुंचे। दोनों एक ही पार्टी और एक ही जिले थे। उम्र और अनुभव में चंपाई अधिक थे, इसलिए धीरे-धीरे दोनों के बीच गुरु-शिष्य जैसा संबंध बन गया। 2000 के विधानसभा चुनाव में अर्जुन मुंडा भाजपा में आ गए और उसी साल झारखंड का भी गठन हो गया। बाबूलाल मरांडी के सीएम पद से इस्तीफे के बाद अर्जुन मुंडा सीएम बने। भाजपा काम के बल पर उनकी जिम्मेदारी बढ़ाती गई। लेकिन, 2014 के विधानसभा में चुनाव  अर्जुन मुंडा हार गए। इसके बाद भी भाजपा ने उन्हें किनारे नहीं लगाया, बल्कि बड़ी जिम्मेदारी देती गई। कहा जा रहा है कि चंपाई को भाजपा में लाकर अर्जुन मुंडा, पूर्व सीएम और वर्तमान में ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास (Raghuvar Das governer of Odisha) और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को झारखंड की राजनीति में किनारे लगा दिया है। 

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Inside Story : Who is bringing Champai into BJP?

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