GA4-314340326 आखिरकार JMM में पड़ ही गई फूट !

आखिरकार JMM में पड़ ही गई फूट !

 

@चंपाई ने दिल्ली पहुंचकर पहले न कहा, फिर बयान जारी कर दिल का दर्द बयां किया 

Ranchi (Jharkhand): पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान जल संसाधन मंत्री चंपाई सोरेन (Champai Soren) ने आखिरकर झामुमो (JMM) से बगावत कर ही दी, वे अकेले नहीं बल्कि उनके साथ पार्टी के छह और ‌विधायक शामिल हैं। चंपाई के नेतृत्व में सभी विधायक कोलकाता के रास्ते दिल्ली गए हैं। बताया जा रहा है कि शनिवार को ही झामुमो के बागी पूर्व विधायक लोबिन हेंब्रम (Lobin Hembram) दिल्ली से भाजपा का मैसेज लेकर लौटे थे और उन्होंने सीधे चंपाई सोरेन से मिलकर उन्हें भाजपा सिक्रेट मैसेज दिया था। लेकिन, तब मीडिया के सवालों को लोबिन और चंपाई दोनों ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह सिर्फ अफवाह है, वह कहीं नहीं जा रहे हैं। लोबिन ने कहा था कि वह एक बीमारी के संबंध में चंपाई से दवा पूछने आए थे। लेकिन, रविवार सुबह होते पूरी पटकथा सामने आ गई। चंपाई के साथ दिल्ली जानेवाले विधायकों में दशरथ गगराई (Dashrath Gagrai), चमरा लिंडा (Charmra linda) , रामदास सोरेन (Ramdas Soren) और समीर मोहंती (Sameer Mohanti) के नाम लिए जा रहे हैं। जबकि, लोबिन हेंब्रम पहले ही भाजपा (BJP) में जाने का संकेत दे चुके हैं। जानकारी के अनुसार, सभी विधायक चंपाई जमशेदपुर से होते हुए कोलकाता पहुंचे और वहां से सभी लोग दिल्ली के लिए रवाना हो गए। एयर इंडिया के फ्लाइट नंबर 0769 से ये लोग कोलकाता से दिल्ली गए हैं। चर्चा है कि चंपाई सोरेन और जेएमएम के कई विधायक दिल्ली में बीजेपी नेताओं से मुलाकात करेंगे। दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात और बातचीत के बाद यदि सहमति बनी, तो चंपाई सोरेन और जेएमएम के कई विधायक भाजपा में शामिल भी हो सकते हैं।

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हालांकि, अभी भी चंपाई भाजपा में जाने की बात से कर रहे इंकार

दिल्ली एयरपोर्ट से बाहर आने पर पत्रकारों ने जब चंपाई सोरेन से भाजपा में शामिल होने को लेकर सवाल किए तो उन्होंने कहा कि आज लोग जिस तरह से हमसे सवाल कर रहे हैं, उसका हम क्या जवाब देंगे। हमले कह दिया है कि हम निजी काम से दिल्ली आए हैं। कोलकाता में भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) से मुलाकात के सवाल पर चंपाई ने कहा कि  वहां उनकी किसी से मुलाकात नहीं हुई है। वे निजी काम से दिल्ली आए हैं और काम हो जाने बाद ही वे लोगों को बताएंगे। दूसरी ओर, चंपाई सोरेन ने सरायकेला स्थित अपने घर पर लगे झामुमो के झंडे को भी हटा दिया है।

दशरथ और चमरा ने कहा- भाजपा में नहीं जाएंगे 

झामुमो विधायक दशरथ गगराई और चमरा लिंडा ने भाजपा में शामिल होने की किसी भी संभावना से इंकार किया है। चमरा ने कहा है कि वे रांची में ही हैं, कहीं नहीं गए हैं। रही बात भाजपा में जाने कि तो पूरी तरह गलत है। दूसरी ओर, ओर दशरथ गगराई ने बयान जारी झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के प्रति आस्था जताई है। साथ ही, कहा है कि मैं झामुमो में हूं और झामुमो में ही रहूंगा। भाजपा में जाने का सवाल ही नहीं उठता है।

चंपाई ने शाम को जारी किया राज्य की जनता के नाम संदेश 

जोहार साथियों,

आज समाचार देखने के बाद, आप सभी के मन में कई सवाल उमड़ रहे होंगे। आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसने कोल्हान के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक गरीब किसान के बेटे को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया। अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत में औद्योगिक घरानों के खिलाफ मजदूरों की आवाज उठाने से लेकर झारखंड आंदोलन तक, मैंने हमेशा जन-सरोकार की राजनीति की है। राज्य के आदिवासियों, मूलवासियों, गरीबों, मजदूरों, छात्रों एवं पिछड़े तबके के लोगों को उनका अधिकार दिलवाने का प्रयास करता रहा हूं। किसी भी पद पर रहा अथवा नहीं, लेकिन हर पल जनता के लिए उपलब्ध रहा, उन लोगों के मुद्दे उठाता रहा, जिन्होंने झारखंड राज्य के साथ, अपने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे। इसी बीच, 31 जनवरी को, एक अभूतपूर्व घटनाक्रम के बाद, इंडिया गठबंधन ने मुझे झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की सेवा करने के लिए चुना। अपने कार्यकाल के पहले दिन से लेकर आखिरी दिन (3 जुलाई) तक, मैंने पूरी निष्ठा एवं समर्पण के साथ राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया। इस दौरान हमने जनहित में कई फैसले लिए और हमेशा की तरह, हर किसी के लिए सदैव उपलब्ध रहा। बड़े-बुजुर्गों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों एवं समाज के हर तबके तथा राज्य के हर व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए हमने जो निर्णय लिए, उसका मूल्यांकन राज्य की जनता करेगी। जब सत्ता मिली, तब बाबा तिलका मांझी, भगवान बिरसा मुंडा और सिदो-कान्हू जैसे वीरों को नमन कर राज्य की सेवा करने का संकल्प लिया था। झारखंड का बच्चा- बच्चा जनता है कि अपने कार्यकाल के दौरान, मैंने कभी भी, किसी के साथ ना गलत किया, ना होने दिया। इसी बीच, हूल दिवस के अगले दिन, मुझे पता चला कि अगले दो दिनों के मेरे सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया है। इसमें एक सार्वजनिक कार्यक्रम दुमका में था, जबकि दूसरा कार्यक्रम पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण करने का था। पूछने पर पता चला कि गठबंधन द्वारा 3 जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है, तब तक आप सीएम के तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते।

क्या लोकतंत्र में इस से अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे? अपमान का यह कड़वा घूंट पीने के बावजूद मैंने कहा कि नियुक्ति पत्र वितरण सुबह है, जबकि दोपहर में विधायक दल की बैठक होगी, तो वहां से होते हुए मैं उसमें शामिल हो जाऊंगा। लेकिन, उधर से साफ इंकार कर दिया गया।

पिछले चार दशकों के अपने बेदाग राजनैतिक सफर में, मैं पहली बार, भीतर से टूट गया। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। दो दिन तक, चुपचाप बैठ कर आत्म-मंथन करता रहा, पूरे घटनाक्रम में अपनी गलती तलाशता रहा। सत्ता का लोभ रत्ती भर भी नहीं था, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी इस चोट को मैं किसे दिखाता? अपनों द्वारा दिए गए दर्द को कहां जाहिर करता? 

जब वर्षों से पार्टी के केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक नहीं हो रही है, और एकतरफा आदेश पारित किए जाते हैं, तो फिर किस से पास जाकर अपनी तकलीफ बताता? इस पार्टी में मेरी गिनती वरिष्ठ सदस्यों में होती है, बाकी लोग जूनियर हैं, और मुझ से सीनियर सुप्रीमो जो हैं, वे अब स्वास्थ्य की वजह से राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, फिर मेरे पास क्या विकल्प था? अगर वे सक्रिय होते, तो शायद अलग हालात होते। 

कहने को तो विधायक दल की बैठक बुलाने का अधिकार मुख्यमंत्री का होता है, लेकिन मुझे बैठक का एजेंडा तक नहीं बताया गया था। बैठक के दौरान मुझ से इस्तीफा मांगा गया। मैं आश्चर्यचकित था, लेकिन मुझे सत्ता का मोह नहीं था, इसलिए मैंने तुरंत इस्तीफा दे दिया, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी चोट से दिल भावुक था। 

पिछले तीन दिनों से हो रहे अपमानजनक व्यवहार से भावुक होकर मैं आंसुओं को संभालने में लगा था, लेकिन उन्हें सिर्फ कुर्सी से मतलब था। मुझे ऐसा लगा, मानो उस पार्टी में मेरा कोई वजूद ही नहीं है, कोई अस्तित्व ही नहीं है, जिस पार्टी के लिए हम ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। इस बीच कई ऐसी अपमानजनक घटनाएं हुईं, जिसका जिक्र फिलहाल नहीं करना चाहता। इतने अपमान एवं तिरस्कार के बाद मैं वैकल्पिक राह तलाशने हेतु मजबूर हो गया।

मैंने भारी मन से विधायक दल की उसी बैठक में कहा कि - "आज से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है।" इसमें मेरे पास तीन विकल्प थे। पहला, राजनीति से सन्यास लेना, दूसरा, अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा, इस राह में अगर कोई साथी मिले, तो उसके साथ आगे का सफर तय करना। उस दिन से लेकर आज तक, तथा आगामी झारखंड विधानसभा चुनावों तक, इस सफर में मेरे लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं। एक बात और, यह मेरा निजी संघर्ष है इसलिए इसमें पार्टी के किसी सदस्य को शामिल करने अथवा संगठन को किसी प्रकार की क्षति पहुंचाने का मेरा कोई इरादा नहीं है। जिस पार्टी को हमने अपने खून-पसीने से सींचा है, उसका नुकसान करने के बारे में तो कभी सोच भी नहीं सकते। 

लेकिन, हालात ऐसे बना दिए गए हैं कि...

आपका,

चम्पाई सोरेन


हमने पहले ही बता दिया था : चंपाई सोरेन भाजपा में हो रहे शामिल लिंक पर क्लिक करें और पढ़ें 



Ultimately there was a split in JMM

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