*यह राज्य के कद्दावर मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू के निर्वाचन क्षेत्र का मामला है
*गरीब आदिवासी मनीषा गंभीर रूप घायल हो तो परिजन दो नदी पार करके इलाज कराने ले गये
Giridih / Amit Sahay: आजादी के 75 साल बाद भी गिरिडीह जिले में विकास के तमाम दावों के बीच, कुछ गांवों की तस्वीरें सिस्टम की असलियत को उजागर कर रही हैं। नक्सल क्षेत्र पीरटांड़ के डहिया और दलुआडीह जैसे गांवों में आज भी चरपहिया जाने के लिए पक्की सड़कें नहीं हैं। ऐसे कई अन्य मामलों ने विकास के दावों की पोल खोल दी हैं। गिरिडीह में आदिवासियों की स्थिति कभी नहीं सुधरी, और सिस्टम की उपेक्षा ने उनकी जिंदगी को और भी कठिन बना दिया है। पक्की सड़कें नहीं होने के कारण से ग्रामीणों को न केवल स्वास्थ्य में परेशानी होती है, बल्कि गंभीर रूप से बीमार मरीजों को खाट पर टांग कर इलाज के लिए ले जाना पड़ता है। हाल ही में डहिया गांव में मनीषा नामक आदिवासी महिला को गंभीर चोट के हालात में इलाज के लिए खाट पर लेकर लोग दो नदियां पार कर पक्के मार्ग तक पहुंचे। गिरिडीह के आदिवासी इलाकों में, चिकित्सा सुविधाओं की कमी ही नहीं, बल्कि गरीबी के कारण इलाज भी महंगा हो जाता है।
अस्पताल पहुंचे तो पैसा नहीं, बिना इलाज के लौटना
धनबाद के एक नर्सिंग होम ने महिला के इलाज पर डेढ़ लाख रुपये खर्च बता दिया। अब इतना पैसा यह गरीब परिवार कहां से लाता था। मनीषा को बिना इलाज कराए घर वाले लेकर लौट गए। अब उसे पीरटांड़ के ही सरकारी अस्पताल में दिखाने की तैयारी परिवार कर रहा है। यहां हम आपको यह बता दें कि पीरटांड़ सूबे के मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू (Sudivya Kumar Sonu) के विधानसभा क्षेत्र गिरिडीह का हिस्सा है। पीरटांड़ प्रखंड के मधुबन पंचायत के डहिया व दलुआडीह की बात करें, तो गांव की मनीषा देवी रविवार सुबह पानी लाने के क्रम में गिर गयी और उसका हाथ टूट गया। जिसके बाद स्थानीय लोगों ने खटिया पर टांग कर एक किमी दूर पहुंच पथ तक ले गए उसके बाद किसी के कार से उसे धनबाद ले जाया गया।
पीरटांड़ में हेल्थ सिस्टम खाट पर है
पारसनाथ पहाड़ की तराई पर बसे आदिवासियों को कब खाट सिस्टम से मुक्ति मिलेगी! दुनिया के सबसे बड़े जैन तीर्थ स्थल मधुबन ((Madhuvan) से महज चार से पांच किमी की दूरी पर स्थित मधुबन पंचायत के ही डहिया व दलुआडीह तक जाने के लिए कोई सड़क नहीं है। साथ ही, रास्ते में दो-दो नदी है। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कितनी मुश्किलों में यहां के आदिवासियों का जीवन कट रहा है।
ग्रामीणों की पीड़ा
*डहिया की सुनीता का कहना है कि सड़क के बिना जीना मुश्किल हो गया है। बीमार पड़ने पर खटिया पर लादकर मरीज को पिपराडीह पहुंचाया जाता है। वहां से फिर मधुबन ले जाने पर इलाज की सुविधा मिलती है।
*गांव के बुधन सोरेन काफी आक्रोशित थे कहा कि वोट लेने के लिए नेता यहां आते हैं, लेकिन आज तक सड़क नहीं बने है । सड़क और पुल का निर्माण यहां बेहद जरूरी है।
क्या फिर किसी की मौत होगी, तब जागेगी सरकार!
वर्ष 2021 में राजधनवार के विधायक एवं मौजूदा विधायक व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के विधानसभा क्षेत्र राजधनवार के तिसरी प्रखंड के बरदौनी गांव के लक्ष्मीबथान टोला की रहने वाली आदिवासी महिला सुरजी को प्रसव पीड़ा के दौरान खाट पर लेटाकर अस्पताल ले जाया जा रहा था। रास्ते में ही सुरजी ने एक बच्ची को जन्म दिया जो मर गई। इसके बाद उसे उसी तरह तिसरी स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहां उसकी भी मौत हो गई थी। यह मामला तब सुर्खियों में रहा था। सुरजी के पति सुनील टुडू ने बताया था कि उसके गांव तक जाने के लिए कोई सड़क नहीं है। इस कारण, वहां कोई एंबुलेंस या कोई गाड़ी नहीं पहुंचती है, तब जाकर सरकार की नींद टूटी थी। ऐसा लगा था कि सुदूर गांवों में रहने वाले आदिवासियों को अब ऐसी स्थिति का दुबारा सामना नहीं करना पड़ेगा। लेकिन, आज भी स्थिति नहीं बदली है।
Giridih: If someone falls sick, even today the cot is the only support
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