तारकेश्वर महतो/silli(ranchi) रंगों का त्योहार होली नजदीक आते ही सिल्ली व इसके आसपास के जंगलों में पलाश के फूल चारों ओर दिखने लगे हैं। पेड़ों पर पलाश के फूलों की बहार छाई हुई है, जिससे आसपास के इलाके का प्राकृतिक सुंदरता बढ़ने लगा है। सिल्ली रांची एवं सिल्ली बुंडू मार्ग सहित ग्रामीण क्षेत्र की अन्य सड़कों के किनारे लगे पलाश के पेड़ों पर आए फूलों ने सड़कों की रौनक बढ़ा दी है। वसंत ऋतु के समय में यह फूल खिलने लगते है। होली के आसपास यह फूल चरम पर आकर जंगल की खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। आयुर्वैदिक शोध संस्थान सह पंचकर्म विज्ञान चिकित्सालय झारखंड मोड मुरी निर्देशक गोल्ड मेडलिस्ट चिकित्सक डॉ मधुसूदन मिश्रा बताते है पलाश के फूलों के रंग से खेली जाती थी होली। आज भले ही हमें केमिकल युक्त रंग, गुलाल से होली पर्व मनाते है, लेकिन एक समय था, जब पूर्वज पलाश के फूल से ही होली खेला करते थे। पलाश के फूल को होली के लिए एक दिन पहले एकत्रित कर उसे मिट्टी के पात्र में रखकर गर्म करते थे। इससे प्राकृतिक रंग तैयार होता था। बसंत ऋतु में पलाश के पेड़ से पत्ते झड़ जाते हैं और फूल उग आते हैं, जो प्राकृतिक सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं।
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