वाराणसी से लौटकर पीके गुप्ता
कभी बनारस शहर की पहचान वहां की छाेटी-छोटी शंकरी गलियां, घनी आबादी और इन सब चिजों के बीच भागदौड की जिन्दगी, वहां का रहन सहन और खान पान हुआ करता था। बनारस का पान पुरे विश्व मे प्रसिद्ध है तो बनारस की साडियों का कायल को भारत रत्न गायिका स्व. लता मंगेश्कर भी थीं। लेकिन,
जिसके कारण बनारस शहर का नाम विश्व पटल पर जाना जाता है वह काशी विश्वनाथ का मंदिर, शंकरी गलियां और उन गलियों ने फैली गंदगी के कारण ज्यादा चर्चा मे रहती थी। जीवनदायिनी गंगा नदी के किनारे बसे इस शहर को शंकरी गलियो से निकलकर 300 मीटर लम्बे और लगभग 50 मीटर चौडे कॉरीडोर तक का सफर तय करने लगभग ढाई सौ साल गए। इस दौरान बनारस के लोगों ने न जाने कितने राज देखे पर राम राज्य तो उन्हे हाल के दिनो मे ही देखने को मिल रहा है। गंगा किनारे बसे इस शहर के लोगो का दिल भले ही गंगा की तरह पवित्र और साफ है लेकिन वहां फैली गंदगी के कारण बाहर से आने वाले लोगों के दिल मे यह शहर वो छाप नही छोड पाता था,जिसके कारण वह प्रसिद्ध था।लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बनारस से चुनाव लडने और जीत मिलने के साथ ही बनारस का जैसे कायाकल्प ही हो गया है।मां गंगा के पावन तट पर स्थित विश्व की प्राचीनतम नगरी काशी के हृदय में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों हेतु सुगम दर्शन की सुविधा के लिए काशी विश्वनाथ धाम की विशाल रचना की जा रही है। जिसका कार्य निरंतर चल रहा है।प्रधनमंत्री नरेन्द्र मोदी का सपना और उनकी महात्वाकांक्षी योजना जो लगभाग 700 करोड रूपए का प्रोजक्ट है,उसके पुरा होते ही श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को गंगा नदी से जोड़ेगा।अर्थात गंगो मे पवित्र |स्नान करने के बाद लोगा सिधो बाबा विश्वनाथ का दर्शन कर सकेंगे। बाबा विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा वर्ष 1780 में कराए जाने के लगभग 239 वर्षों के उपरांत मां गंगा के आशीर्वाद से श्री काशी विश्वनाथ मंदिर की महिमा एवं वैभव को और प्रखर करने के लिए काशी के सांसद एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संकल्पित होकर इस नवनिर्माण की आधारशिला रखी है।जिसे काशी विश्वनाथ कॉरीडोर का नाम दिया गया है। इस परियोजना का कुल क्षेत्रफल 39310.00 वर्ग मीटर है।
ऐसे नहीं बन रहा है कॉरीडोर
बनारस जैसे शंकरी शहरो को लम्बे चौडे कॉरीडोर मे परिवर्तन करना कोई आसान काम नही था। लेकिन दृढ इच्छा शक्ति से किया गया काम हमेशा सफल होता है। पीएम मोदी ने ऐसा कर दिखाया है। इस परियोजना के अंतर्गत सभी भवनों/दुकानों इत्यादि को सहमति के आधार पर क्रय किया गया है, जिसमें निवसित 500 परिवारों को आपसी सहमति से विस्थापित किया गया है। इन भवनों को क्रय एवं रिक्त कराने के उपरांत प्राप्त सभी मंदिर प्राचीन धरोहर हैं, जो इन भवनों से आच्छादित थे। उन्हें भवनों को ध्वस्त कर मलवा निस्तारण के उपरांत जनसामान्य को दर्शन पूजन हेतु सुलभ कराया गया है। मंदिरों को इस परियोजना का भाग बनाकर इस क्षेत्र को एक अद्भुत संकुल का रूप दिया जाएगा।परियोजना अंतर्गत 330.00 मीटर लम्बाई एवं 50.00 मीटर चौड़ाई एवं घाट से एलिवेशन 30 मीटर क्षेत्र में निर्माण कराया जाएगा।मंदिर प्रशासन द्वारा खरीदे गए ज्यादातर मकान ध्वस्त कर दिये गये हैं। पुराने मकानों के ढहाने के बाद अनेक प्रचीन मंदिर आसानी से दिखाई देने लगे हैं। कॉरिडोर निमार्ण के बाद श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से दशाश्वमेध घाट पर प्रति वर्ष आने वाले करोड़ों देशी-विदेशी श्रद्धालुओं का आवागम एवं दर्शन-पूजन करने पहले की अपेक्षा सुगम हो जाएगा।आंकडो की माने तो युपी मे देश मे सर्वाधिक लगभग 50 लाख विदेश पर्यटक आते है। इनमे से अधिकांश लोग काशी विश्वनाथ का दशर्न करने आते है।
84 घाटों की है अलग अलग नाम और पहचान
बनारस मे वैसे तो सैकडो घाट है जिनके अलग अलग नाम और अलग अलग पहचान है,साथ ही इन घाटो मे नहाने के अलग अलग पूण्य भी शास्त्रों मे बताए गए है।अस्सी घाट,रीवा घाट,तुलसी घाट,मणीकर्णिका घाट,दशाश्वमेघ घाट,नारद घाट जैसे प्रमुख घाटो का अपना अपना महत्व है।देश के तामाम राजाओं के नाम भी घाट है। राजा हरिशचन्द्र घाट की अपनी अलग विशेषता है तो मणिकर्णका घाट मोक्ष प्राप्ति के लिए जाना जाता है।बनारस के मल्लाह नाव से आपको कई कीलोमीटर मे फैले घाटो का न सिर्फ दशर्न कराते है ब्लकि इसकी विशेषता से भी अवगत कराते है। अस्सी घाट मे रोज सुबह सैकडो लोग मां गांगा के दशर्न के साथ ही स्वास्थय लाभ लेते देखे जा सकते है, तो दशाश्वमेध घाट की संध्या आरती देखने के लिए देश-विदेश के भक्तो की भीड उमडी रहती है।
बनारसी साड़ी और पान है यहां की पहचान
बनारस की साड़ी इतना फेमस है कि पुरे देश मे बनारसी साडी आज एक ब्रांड बन गया है।वही अगर आप बनारस गए है,और पान नही खाया तो समझ लिजिए आने कुछ किया ही नही।60 साल के दीपक चैरसिया पान वाला बाते है कि तीन पुश्तो से पान बेच रहे है, बनारस के पान नही यहां की पानी और बाबा विश्वनाथ की कृपा है कि पान इतना स्वादिष्ट हो जाता है। उन्होने बताया कि उनके दुकान में 5 रुपए से लेकर 300 रूपए तक के पान बेचे जाते है। वहीं साडी विक्रेता अजीम भाई करीब 40 साल से बनारसी साड़ी का कारोबार कर रहे है। लेकिन बाप-दादा सैकडो साल से इस कारोबार से जुडे थे,जिसे वे आगे बढाने का काम कर रहे है।बनारस का मदनपुरा नाम स्थान बनारसी साडियों का मंडी है। यहां 500 से लेकर लाखो रूपए तक का बनारसी सिल्क साडी मिलता है।पान और साडी के साथ ही बनारस का मलाई भी कापी प्रसिद्ध है। गली गली मे मलाई की दुकानों मे उमडी भीड यह बताने के लिए काफी है कि यहां के लोग इसलिए मिठे होते है क्योकि उन्हे न सिर्फ मिठा खाना ब्लकि मीठा बनना भी पंसद है। उनकी बोली भी काफी मिठी होती है सहज की पर्यटको को अपनी ओर लुभाती है।
बीएचयू घूमे बिन वाराणसी की यात्रा आधूरी
इस सब चीजों के बीच अगर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की चर्चा नहीं की जाए तो बनारस दर्शन ही बेमानी होगी। शिक्षा के हब के रूप मे पुरे भारत मे प्रसिद्ध बीएचयु वाकई दर्शन के कबिल है।4 फरवरी 1916 को महामना पंडित मदन मोहन मालवीय इस विश्वविद्यालय की स्थापना एक स्वच्छ और शिक्षित भारत के निर्माण की परिकल्पना को लेकर की थी। इस विश्वविद्यालय की दो परिसर है। मुख्य परिसर लगभाग 1300 एकड मे फैला है।जिसकी भूमि काशी नरेश ने दान की थी।मुख्य परिसर मे 6 संस्थान,14 संकाय अैर लगभग 140 विभाग है। इस संस्थान मे पढना अपने आप मे गौरब से कम नही है। वैसे तो उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में है, लेकिन अगर आप बनारस जाते है तो देखेगे की पुरा का पुरा युपी बनारस मे ही समाया हुआ है।
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