कोल इंडिया (Coal India) की अनुसंगी कंपनी सेंट्रल कोल फील्ड लिमिटेड (Central Coal Field Limited) की केडीएच कोल परियोजना (KDH Coal Project) के क्रेशर (crusher) के प्रदूषण (Pollution) लोगों का जीना मुहाल हो गया है। लेकिन, यह प्रदूर्षण ऐसे नहीं फैल रहा है, इसके लिए CCL प्रबंधन की लापरवाही और नियमों की अनदेखी सबसे बड़ा कारण है।
NBR/Khalari
झारखंड (Jharkhand) की राजधानी रांची (Ranchi) से महज 55 से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है सीसीएल (CCL) की केडीएच कोल परियोजना (KDH Coal Project)। इस परियोजना में देश के बड़े पावर प्लांटों को भेजे जानेवाले कोयले को तोड़ने के लिए क्रशर (crusher) लगी हुई है। नियमत: कोयले को क्रश करने के दौरान उस पर पानी डाले जाने चाहिए, ताकि धूल-गर्दा न उड़े और आसपास के गांवों में रहनेवाले लोग प्रदूषण (Pollution) का शिकार होकर बीमार न पड़ें, लेकिन यहां सीसीएल प्रबंधन सारे नियमों को ताक पर रखकर काम रहा है।
क्रशर के आसपास उठते कोयले की धूल का गुबार। |
स्प्रिंकलर सिस्टम है, पर नियमित रूप से चलता नहीं
प्रदूषण को रोकने के लिए कोयले को क्रश करने के दौरान उसे भिंगाए रखने के लिए स्प्रिंकलर सिस्टम (Sprinkler System) लगा हुआ है। लेकिन, नियमित रूप से इसे नहीं चलाया जाता है। इस कारण कोयले से निकलने वाली धूल वातावरण में घुलकर वायु और जल को प्रदूषित कर रही है। वहीं, ट्रांसपोर्टेशन रोड पर वाहनों की ओवर लोडिंग के कोयला सड़कों पर गिरता जाता है, जो बाद में पीसकर धूल में तब्दील हो जाता है। इससे सड़कों पर चल रहे वाहनों के पीछे उड़ती धूल से कुछ मीटर की दूरी तक भी दिखाई नहीं देती है। किसी गाड़ी के गुजरने के बाद दिन में ही अंधेरा छा जा रहा है।
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कोल डस्ट से बीमार पड़ने लगे हैं लोग
कोल डस्ट से बरटोला, भूतनगर, केडीएच कॉलोनी व केकरहीगड़ा गांव में रहनेवाले लोगों को सांस लेने में तकलीफ होने लगी है। वहीं, कोयले की धूल फेफड़े में जम रही है। साथ ही, आंखों पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा है। क्षेत्र के बुद्धिजीवी वर्गों का मानना है कि क्रशर में स्प्रिंकलर से लगातार पानी का छिड़काव होने से धूल नही उड़ेगी। वहीं, कोयला ट्रांसपोर्टिंग में चलने वाले वाहनों को त्रिपालसे ढक कर चलाया जाए। सड़कों पर नियमित रूप से पानी का छिड़काव किया जाए, तो काफी हद तक प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है।
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