GA4-314340326 नवागढ़ में सरहुल मिलन समारोह: विधायक राजेश कच्छप ने कहा, आदिवासी जीवन दर्शन सभी धर्मों का मूल, इसे अपनाकर ही हम कर सकते हैं प्रकृति का संरक्षण

नवागढ़ में सरहुल मिलन समारोह: विधायक राजेश कच्छप ने कहा, आदिवासी जीवन दर्शन सभी धर्मों का मूल, इसे अपनाकर ही हम कर सकते हैं प्रकृति का संरक्षण

 

सरहुल मिलन समारोह में शामिल लोग
Angara (Ranchi) नवागढ़ मैदान में बुधवार को सरहुल मिलन समारोह का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि खिजरी विधायक राजेश कच्छप, विशिष्ट अतिथि आदिवासी जनपरिषद के अध्यक्ष प्रेमशाही मुण्डा, अनगड़ा प्रमुख दीपा उरांव, जिला परिषद सदस्य अनुराधा मुण्डा, झामुमो के सिल्ली विस प्रभारी रामानंद बेदिया, भाजपा जिलाध्यक्ष सुरेन्द्र कुमार महतो, भाजयुमो के प्रदेश उपाध्यक्ष सत्यदेव मुंडा, भाजपा जिला मीडिया प्रभारी रामसाय मुंडा व ग्रामप्रधान संघ के रांची जिलाध्यक्ष उमेश कुमार बड़ाईक थे। अध्यक्षता आयोजन समिति की अध्यक्ष फाल्गुनी शाही व संचालन दिलीप मिर्धा ने की। आसपास की एक दर्जन खोरहा टीमें व पाहन शामिल हुए। सभी खोरहा टीम व पाहनों को आयोजन समिति की ओर से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर मुखिया भुवनेश्वर बेदिया, बीसा मुखिया मंजोती देवी, संतोष बेदिया, रेखा देवी, नरेन बेदिया, जगदीश भोगता, सोमरा बेदिया,  बुधराम बेदिया, कामाख्या नारायण शाही, विवेकानंद शाही, पंचम भोगता, शफीक अंसारी आदि उपस्थित थे। 

खिजरी विधायक राजेश कच्छप का स्वागत करते रामानंद बेदिया।

              किसने क्या बोला

खिजरी विधायक राजेश कच्छप ने कहा कि आदिवासी जीवन दर्शन सभी धर्मो का मूल है। इसे अपनाकर ही हम अपने प्रकृति का संरक्षण कर सकते है। आदिवासी और प्रकृति को एक दूसरे से अलग नही किया जा सकता है। आदिवासी समाज को राजनीतिक रूप से सजग होना होगा। 

आदिवासी जनपरिषद के अध्यक्ष प्रेमशाही मुण्डा ने कहा कि सरहुल को अब राज्य पर्व का दर्जा मिलना चाहिए। सरहुल ने अपने आप को प्रकृति संरक्षण पर्व के रूप में स्थापित कर दिया है। और प्रकृति के संरक्षण पर ही मानव का अस्तित्व टिका है। 

झामुमो के सिल्ली विस प्रभारी रामानंद बेदिया बताते है सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व धार्मिक रूप से आदिवासी समाज को एकजुट होने की जरूरत है। आदिवासी समाज ने निस्वार्थ भाव से हमेशा से समाज को प्रकृति संरक्षण को लेकर आइना दिखाते आये है। सरहुल के माध्यम से हम अपने आदिवासी परंपरा को प्रकृति संरक्षण के रूप में मनाते है। आदिवासी विकास की योजनाएं हमेशा आदिवासी समाज के प्रकृति संरक्षण के तारतम्य के साथ होनी चाहिए।

आयोजन समिति की अध्यक्ष फाल्गुनी शाही बताती है इस तरह के आयोजन से आदिवासी समाज में अपने धर्म व संस्कृति की पहचान बनाये रखने को लेकर जागरूकता आती है। हमें सामूहिक प्रयास से आदिवासी धर्म व संस्कृति की सुरक्षा करने की जरूरत है।

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