GA4-314340326 Civic Issue : आदिवासी बहुल लुपुंग के हडुवाटुंगरी में गंभीर पेयजल संकट... डाड़ी का पानी थोड़ा-थोड़ा करके डेकची में इकट्ठा करके प्यास बुझा रहे ग्रामीण

Civic Issue : आदिवासी बहुल लुपुंग के हडुवाटुंगरी में गंभीर पेयजल संकट... डाड़ी का पानी थोड़ा-थोड़ा करके डेकची में इकट्ठा करके प्यास बुझा रहे ग्रामीण

डाढ़ी से बाल्टी में भरा जा रहा पानी।

 हडुवाटुंगरी गांव से अनिल कुमार चौधरी               
Angara (Ranchi) अनगड़ा प्रखंड मुख्यालय से सटे गांव लुपुंग पंचायत के लुपुंगजारा हडुवाटुंगरी में गंभीर पेयजल समस्या उत्पन्न हो गई है। गांव शत-प्रतिशत आदिवासी (महली जनजाति) बहुल है। 13 परिवार के 65 सदस्य प्रतिदिन अपनी प्यास बुझाने के लिए सुबह से ही पानी की तलाश में लग जाते हैं। गांव का एकमात्र चापानल वर्षों से खराब है। एक कुआं है, जो गर्मी के शुरू में ही सूख गया। गांव से आधा किमी दूर एक छह फीट की डाड़ी है, जिसमें सुबह में थोड़ा-थोड़ा पानी पझरता रहता है। इसी पझरते पानी को इकट्ठा करने के लिए सुबह से ही गांव के लोगों की डाड़ी के पास भीड़ लग जाती है। काम पर जाने से पूर्व पानी को जमा करना पहली प्राथमिकता है।  
डाड़ी से पानी भरने के लिए ग्रामीणों की आपाधापी।

पेयजल के लिए डाड़ी का पानी का उपयोग ग्रामीण करते है। नहाने, कपड़ा व बर्तन धोने के लिए गांव से एक किमी दूर माइनिंग खदान में जमा पानी का उपयोग करते हैं। महिलाओं का पूरा दिन पेयजल इकट्ठा करने व पानी से संबंधित नित्यक्रिया में गुजर रहा है। गौरतलब बात तो यह रही कि बगल के गोंदलीपोखर में पेयजल स्वच्छता विभाग के द्वारा लाखों लीटर की झमतावाले पेयजल टंकी से आसपास के अनेक गांवों में पानी की सप्लाई की जा रही है। लेकिन इस गांव को पेयजल आपूर्ति से वंचित कर दिया गया।  
जीतू महली
जीतू महली बताते हैं- पेयजल जमा करना परिवार की प्रतिदिन प्राथमिक काम होता है। देर से जगने पर पेयजल मिलना असंभव है। महिलाएं तीन बजे सुबह से ही पेयजल जमा करने डाड़ी के पास आ जाती है। डेकची में थोड़ा थोड़ा करके पानी इकट्ठा किया जाता है। इस प्रक्रिया में काफी देर लगता है। 

         पानी के लिए हुआ राशनिंग सिस्टम...

ललकू करमाली
गांव के लोगों ने पानी की इस समस्या के समाधान को लेकर राशनिंग सिस्टम कर दिया है। शाम में पानी भरनेवाले परिवार को सुबह में बाद में नंबर दिया जाता है। साथ ही सामूहिक श्रमदान से बारिश से पूर्व डाड़ी की सफाई भी की जाती है। गांववालों ने निर्णय लिया कि इस पानी का उपयोग भोजन बनाने व पेयजल के लिए किया जाता है। ललकू करमाली बताते हैं दो-तीन परिवार के द्वारा डाड़ी का पानी ले जाते ही डाड़ी सूख जाता है। फिर आधा घंटा इंतजार करने के बाद थोड़ा थोड़ा पानी पझरना शुरू करता है। इस पझरते पानी को डेकची में थोड़ा थोड़ा करके इकटठा किया जाता है। बरसात में डाड़ी का पानी गंदा हो जाता है, इसलिए दो किमी दूर के गांव से पेयजल लाया जाता है। 
जिला परिषद सदस्य अनगड़ा अनुराधा मुण्डा
जिला परिषद सदस्य अनुराधा मुंडा बताती हैं-
करोड़ों रुपए सरकार प्रतिवर्ष पेयजल पर खर्च करती है। लेकिन, दुर्भाग्य प्रखंड मुख्यालय से सटे इस आदिवासी बहुल गांव के लोगों को पेयजल जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित रहना पड़ रहा है। गोंदलीपोखर पेयजल टंकी से गांव को जोड़ देने से पेयजल समस्या का समाधान हो जाएगा, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं किया गया। 

वीडियो देखिए....


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