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इसी कुआं में जिंदा दफन हो गए छह लोग |
ग्राउंड जीरो से तारकेश्वर महतो/ Silli (Ranchi) गांव में अभी भी मौत के सात कुएं हैं। इन कूंओं के निर्माण भी 1980-82 के बीच ही कराए गए हैं। सभी कुएं “मौत का कुंआ” के समान हैं। किसी भी कुएं में जगत (मेढ़) नहीं बना हुआ है। बीच खेत में ये कुएं दूर से देखने पर दिखते भी नहीं हैं। बारिश के दिनों में कुएं के आसपास काफी घास-फूस उग गए हैं। इस कारण गांव में कभी भी ऐसी दुर्घटना की पुनरावृत्ति हो सकती है।
सुदेश बोले- मेरे परिवार के छह सदस्य चले गए
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जिंदा दफन होने से बचे भगीरथ से आपबीती सुनते सुदेश |
रातभर एनडीआरएफ ने रेस्क्यू आपरेशन चलाया, सुदेश महतो भी रातभर जागकर रेस्क्यू टीम के साथ डटे रहे। एनडीआरएफ के कमांडेंट रविकांत के नेतृत्व में 36 सदस्यीय टीम लगातार रेस्क्यू ऑपरेशन चलाती रही। रात आठ बजे से दोपहर 1 बजे तक टीम लगातार रेस्क्यू आपरेशन चलाती रही। रेस्क्यू लगातार 17 घंटा चला। अंतिम शव बरामद होने के साथ रेस्क्यू खत्म हुआ।
रेस्क्यू के दौरान सिल्ली विधायक सुदेश कुमार महतो भी रातभर घटनास्थल में डटे रहे। भोजन भी नही किया। डुमरी उपचुनाव में एनडीए उम्मीदवार का नामाकंन कराकर सीधे घटनास्थल पहुंचे थे। समर्थकों ने जब भोजन करने की याद दिलाया तो बोले मेरे परिवार का छह सदस्य असमय चला गया, भोजन कैसे कर सकते है। घटना से मर्माहत सुदेश महतो कभी कुर्सी में बैठते तो कुछ देर बार रेस्क्यू स्थल पहुंचकर मानिटरिंग करते। चेहरे पर तनाव स्पष्ट दिख रहा था। घंटो निशब्द रहे। कुर्सी में बैठकर रात बीता दी। गुरूवार की रात 10 बजे से शुक्रवार की दोपहर 1 बजे तक वे डटे रहे।
पिस्का बेदिया टोली में किसी के घरों में नही जला चूल्हा
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गांव में पसरा रहा सन्नाटा |
पिस्का बेदिया टोली में शनिवार की रात व शुक्रवार को दिन में किसी के घर में चूल्हा नही जला। पूरे गांव में सन्नाटा पसरा रहा। गांव के किसी परिवार ने भोजन नही बनाया। इस गांव में 90 परिवार के करीब तीन सौ सदस्य रहते है। सभी बेदिया जनजाति समुदाय के है। गांव में लगातार रोने की आवाजें आ रही थी। काफी संख्या में गांव के लोग घटनास्थल पर डटे रहे।
पोकलेन चालक काशीनाथ बेदिया बिना थके 17 घंटे किया रेस्क्यू
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पोकलेन चालक काशीनाथ बेदिया |
लगातार बिना थके पोकलेन चालक काशीनाथ बेदिया रेस्क्यू आपरेशन चलाता रहा। काशीनाथ गोला थाना क्षेत्र के गोला सुतरी का रहनेवाला है। लगातार 17 घंटा तक वह मिट्टी की कटाई कर शव को निकालने में जुटा रहा। सुबह में उसने सिर्फ दस मिनट का ब्रेक लिया था। कई बार उसे साथियों ने कुछ देर आराम करने की सलाह दी, लेकिन वह लगातार अपने मिशन में लगा रहा। इधर सांसद संजय सेठ व सिल्ली विधायक सुदेश कुमार महतो ने काशीनाथ के इस साहसिक अभियान के लिए केन्द्र सरकार से सम्मानित करने को लेकर पत्र लिखने की बातें कही।
सात साल के नीरज बेदिया ने किया खबर को “ब्रेक”
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रेस्क्यू देखते सांसद व विधायक |
सात साल के नीरज बेदिया ने किया खबर को “ब्रेक” गांव के सात वर्षीय नीरज बेदिया ने दर्दनाक हादसे की खबर को पूरे गांव में “ब्रेक” किया। इसके बाद ही मामले की खबर पूरी दुनिया को हो पाया। कुंआ से बैल को निकालते के लिए घटना के समय सात-आठ लोग मौजूद थे। लेकिन सभी कुंआ में हुई धंसान के शिकार हो गये। इसी बीच बगल में खेल रहा नीरज बेदिया यह सब देख रहा था। जैसे ही घटना हुई वह दौड़कर अपने घर पहुंचा व अपने माता-पिता को घटना की जानकरी देकर पूरे गांव में सभी को जानकारी देने के लिए दौड़ लगाने लगा। नीरज के सूचना पर ही कुछ ही समय में पूरा गांव घटनास्थल के पास जमा हो गया। इसके बाद गांव के कुछ लोगों ने इसकी सूचना स्थानीय पत्रकारों को दी।
मेरे सामने पिता जमींदोज हो गये, कुछ नही कर सका: भगीरथ बेदिया
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आपबीती सुनाता भगीरथ बेदिया |
घटना में एकमात्र जिंदा बचे भगीरथ मांझी की आपबीती कुंआ धंसने से उपरी सतह पर गिरे भगीरथ मांझी ने कहा कि हम लोग कुंआ में डूबे मवेशी को निकाल रहे थे। अचानक ऊपर से मिट्टी धंसने से करीब सात-आठ लोग गिर गए। कितने लोग गिरे है यह अंदाजा नहीं है। मैं सबसे ऊपर था। लोगों को आवाज लगाई और लोगों से मुझे निकाल लिया लेकिन मेरे पिताजी बहादुर मांझी अंदर दब गए। बताया कि गुरूवार को दिन के 2 बजे के समीप गांव में चर्चा होने लगी की आनंद मांझी का बैल घलटु मांझी के कुंआ में गिर गया है। बैल को कुंआ से निकालने के लिए जमा हुए लोगों के पास सहयोग करने मैं भी पहुंचा। मेरे पिताजी पहले से मौजूद थे। जो एक अन्य के साथ कुंआ में उतर कर नीचे गिरे बैल को रस्सी से बांध दिया। एक व्यक्ति उपर आ गया और मेरे पिताजी कुआं के अंदर से ऊपर खड़े लोगों से रस्सी खींचने के लिए कहा। रस्सी खींचते ही लोग कुछ समझ पाते तब तक कुंआ भरभरा कर धंस गया। जिससे हम सभी कुंआ में गिर गये। मैं कुंआ के अंदर उपरी सतह में था। इस घटना को दूर से देख रहे एक सात साल का बच्चा नीरज मांझी ने मेरे घर एवं अन्य लोगों को सुचना दी। खबर सुन कर मेरे बड़े पापा मुचीराम मांझी एवं आशीर्वाद मांझी कुंआ के समीप पहुंच कर अन्य लोगों की मदद से मुझे कुंआ से निकाला।
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