GA4-314340326 Jharkhand : स्कूल से ज्यादा जरूरी कब्रिस्तान, लोगों ने लिया चुनाव बहिष्कार का निर्णय

Jharkhand : स्कूल से ज्यादा जरूरी कब्रिस्तान, लोगों ने लिया चुनाव बहिष्कार का निर्णय

स्कूल के बाहर खड़े बच्चे और उनके अभिभावक।

Pradeep Gupta/Chanho (Ranchi) : राज्य सरकार 35 लाख रुपए खर्च करके बेतलंगी गांव के कब्रिस्तान की घेराबंदी करा रही है, लेकिन इसी गांव में राजकीय प्राथमिक विद्यालय की बिल्डिंग जर्जर हो गई है, तो उसकी मरम्मत कराने के बजाय स्कूल को ही दो किलोमीटर दूर सोस पंचायत के खूंटीटोला प्राथमिक विद्यालय   में शिफ्ट कर दिया है। इस स्कूल में पढ़नेवाले छोटे-छोटे 65 बच्चे रोज जान जोखिम में डालकर पैदल चार किलोमीटर आना-जाना कर रहे हैं। इस दौरान कई बच्चे दुर्घटना के भी शिकार हो चुके हैं। इसके बावजूद बेतलंगी गांव के ग्रामीणों की न तो प्रशासन सुन रहा है और न ही यहां के जनप्रतिनिधि। हारकर ग्रामीणों ने विधानसभा चुनाव का ही बहिष्कार करने का निर्णय ले लिया है। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि बेतलंगी गांव राजधानी रांची जिले के चान्हो प्रखंड की पतरातू पंचायत  (Patratu) में स्थित है, जहां से महज 50 से 55 किलोमीटर की दूरी पर राज्यपाल, मुख्यमंत्री, झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश समेत पूरा सरकारी अमला बैठा है।

तीन साल से मरम्मत की गुहार लगा रहे ग्रामीण

बेतलंगी के ग्रामीणों का कहना है कि वे लोग पिछले तीन साल से विद्यालय के जर्जर भवन की मरम्मत कराने  की मांग कर रहे हैं। शिक्षा विभाग, सांसद, विधायक से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन किसी ने कोई मदद नहीं की। जब वे लोग बार-बार आवेदन देकर मरम्मत की गुहार लगने तो पिछले साल अगस्त में झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद  (JEPC) के तत्कालीन निदेशक के. रवि कुमार  (K Ravi Kumar) के आदेश पर स्कूल को खूंटीटोला स्कूल में शिफ्ट कर दिया गया। उस वक्त विभाग की ओर से यह बताया गया था कि तीन महीने में बिल्डिंग का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा, लेकिन दो साल गुजर जाने के बाद भी अभी तक कुछ नहीं हुआ है। 

एक ही कमरे में बैठते हैं 1 से पांचवीं तक के स्टूडेंट्स

ग्रामीणों का कहना है कि खूंटीटोला प्राथमिक विद्यालय में भी क्लास रूम की कमी है। इस कारण बेतलंगी के पहली से पांचवीं कक्षा तक के बच्चों को वहां एक ही कमरे में बैठाया जाता है। मतलब अगर पहली क्लास के बच्चों को ए, बी, सी, डी पढ़ाया जा रहा है, तो पांचवीं के बच्चों को भी मजबूरन यही पढ़ना होगा। इसी तरह यदि पांचवीं कक्षा के बच्चों को अलजेब्रा पढ़ाया जा रहा है, तो पहली कक्षा के बच्चों को भी अलजेब्रा ही पढ़ना पढ़ेगा। इससे सहज ही समझा जा सकता है कि किस कदर सरकार और शिक्षा विभाग बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं।

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1923 में बेतलंगी में खुला था स्कूल

बेतलंगी (Betlangi) में  99 साल पहले 1923 में प्राथमिक विद्यालय की स्थापना हुई थी, अब विद्यालय भवन की स्थिति इतनी जर्जर हो गई कि उसमें बच्चों का बैठकर पढ़ना किसी खतरे से कम नहीं था। ग्राम शिक्षा समिति के अध्यक्ष बिंदेश्वर महतो कहते हैं कि सरकार 35-40 लाख रुपए खर्च करके कब्रिस्तान की घेराबंदी कर रही है, लेकिन स्कूल जैसी बुनियादी जरूरतों पर उसका ध्यान नहीं जा रहा है। दुर्भाग्य की बात यह  है कि छोटे-छोटे बच्चों को  दो किलोमीटर दूर दूसरी पंचायत के स्कूल में जाना पड़ रहा है। इस कारण ग्रामीणों ने विधानसभा चुनाव में वोट नहीं डालने का निर्णय लिया है।

मैंने अपने बच्चे का नाम कटा दिया

बेतलंगी की रहनेवाली सरोज कुजूर कहती हैं कि मेरा बेटा राजू उरांव बेतलंगी स्कूल में क्लास टू में पढ़ता था, लेकिन जब स्कूल दो किलोमीटर दूर दूसरी जगह शिफ्ट हुआ, तो जोखिम को देखते हुए मैंने अपने बेटे का नाम कटा कर एक प्राइवेट स्कूल में लिखा दिया है।


Jharkhand: Graveyard is more important than school, people decided to boycott elections


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